हां वो विधवा है

 हां वो विधवा है


 और जॉब करती है,खड़ी है अपने पैरों पर किसी की मोहताज नहीं है।

क्या उसके जीवन की समस्याओं के बारे में कभी कल्पना कर सकते है!!



उसकी संगी साथी कहती है कितने आराम की ज़िंदगी है तुम्हारी ना खाने की चिंता न कहीं जाने पर रोक टोक ,जब जी चाहे घूमो,जब जी चाहे खाओ,जब मन करे सो जाओ...




आश्चर्य की बात है कि  ये सोच महिलाओं की है अब पुरुष वर्ग पर दृष्टि डालें ,तो सब उस महिला से हमदर्दी जताएंगे, पर दिल मे क्या है, ये उनकी आंखों से ,बातों से हर अकेली महिला अंदाज़ लगा लेती है।



जॉब में भी ऐसे पुरुषों से पाला पड़ता है ,जब बाहर कदम निकाला है तो ये सब झेलना पड़ेगा। कई बार मजबूरी वश लिफ्ट भी लेनी पड़ती है और यदि एक पुरुष से 2 या 3 बार लिफ्ट ले ली तो उसके साथ अफेयर के चर्चे शुरू हो जाते है ।महिलाएं कानाफूसी करती है और पुरुष लोग उस पुरुष से अश्लील मज़ाक शुरू कर देते है।



एक महिला जो खुद अपना जीवन यापन कर रही है दुनियां उसे जीने नही देती।

हमदर्दी का डंका पीटने वाले पुरुष यदि किसी समारोह में अपनी बीवी के साथ उस महिला से टकरा जाएं तो कन्नी काट जाते है। 

मैं पूछती हूँ क्या गलती है उन महिलाओं की ?? ये कि वो विधवा है!!या ये की अकेली रहकर जॉब कर रही है!! या फिर ये उनपर कोई जिम्मेदारी नहीं !!....



क्यो पुरुष वर्ग उनको बाजार की वस्तु समझता है और इस्तेमाल करना चाहता है,क्यों महिलाओं को डर रहता है कि उनके पति कहीं इनके चक्कर मे न आ जाएं??

क्यों ज़रा सी किसी पुरुष से बात करने पर उनका नाम उसके साथ जोड़ दिया जाता है??

एक तरफ हम औरत के सम्मान का डंका पीटते है दूसरी तरफ उन्ही लोगो से वो सुरक्षित नहीं।



कई 

महिलाएं बेचारी खुद को गंदी नज़रों से बचाने के लिए सुहाग के चिन्ह तक काम मे लेती है, आखिर क्यों ये डर क्यों!!!जिनको कहने वाला कोई नही रहा, उनको समाज ने कहना शुरू कर दिया।उन महिलाओं से कहना चाहूंगी कि औरत को बुरा कहने से पहले अपने पति पर लगाम कसें,और उन पुरुषों से जो हमदर्दी दिखाते है वो अपनी पत्नी का ध्यान रखकर उसको संतुष्ट रखें तो बेहतर होगा।



यूँ तो पुरुष और नारी एक गाड़ी के दो पहिये है पर यदि एक पहिया टूट जाए तो भी गाड़ी चलती है आज नारी ने अपनी खुद की पहचान बनाई है वो किसी की पहचान की मोहताज नही है।



सम्मान करें उस हर एकल महिला का जिसे किस्मत ने एकल किया है और उसने उस चुनोती को स्वीकार कर अपनी ज़िंदगी बसर करने का निर्णय लिया है।सहयोग करें तो साफ मन से अन्यथा नहीं और महिलाएं भी अपनी सोच को सुधारें ,वो भी आपकी  बहन जैसी ही हैं,केवल उनका सुहाग नही है।उनकी परेशानियों में भागीदार बन सकें तो ठीक अन्यथा अपनी जुबान से उनकी निंदा न करें।क्यो की वख्त किसी का भी बुरा आ सकता है।

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